अध्याय
अध्याय

कार्यकारी सार

भारत में आईसीडी और सीएफएस : एक विहंगावलोकन

एक इनलैंड कंटेनर डिपो (आईसीडी)/कंटेनर फ्रेट स्टेशन (सीएफएस) ड्राई पोर्ट भी कहलाते हैं जो सीमाशुल्क के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण की स्थिति के साथ मल्टीमॉडल लोजिस्टिक्स केन्द्र हैं। वे रेल अथवा सड़क से एक बंदरगाह से जुडे हुए हैं और निर्यात और आयात कार्गों के लिए एक पोतांतरण केन्द्र के रूप में कार्य करते है। इसके पोतांतरण केन्द्र होने के अतिरिक्त वे आयात/निर्यात हेतु लदे हुए एवं खाली कंटेनरों का प्रबंधन एवं भण्‍डारण, गोदाम, अस्‍थाई प्रवेश, पुन: निर्यात के लिए सेवाएं प्रदान करते हैं। आईसीडी सामान्य रूप से सर्विसिंग पोर्ट से दूर देश के आन्‍तरिक स्थानों पर स्थित होता है। दूसरी ओर, सीएफएस, सर्विसिंग पोर्ट के पास स्थित ऑफ डॉक सुविधा है, जो कार्गों तथा सीमाशुल्‍क संबंधी गतिविधियों को पोर्ट क्षेत्र से बाहर स्‍थानान्‍तरित करके पोर्ट में भीड़ कम करने में सहायक है। आईसीडी और सीएफएस आयात और निर्यात के लिए कंटेनरयुक्त कार्गों के आवागमन के लिए अति आवश्यक लोजिस्टिक्स अवसंरचना उपलब्‍ध कराते हैं और इस प्रकार व्यापार को सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देते है।

वाणिज्य विभाग के डाटा के अनुसार, मार्च 2017 तक देश में 129 आईसीडी थे। इन मेंमहाराष्ट्र में अधिकतम आईसीडी (13) है, उसके बाद उत्तर प्रदेश (11), तमिलनाडु (10), गुजरात (9) और हरियाणा (8) है। दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में आईसीडी तुगलकाबाद भारत का सबसे बड़ा आईसीडी है जो 44 हैक्टेयर भूमि तक फैला हुआ है। सुदूर उत्तरी राज्य जम्मू और कश्मीर में कोई भी आईसीडी नहीं है और सभी उत्तर-पूर्वी राज्यों के बीच केवल एक आईसीडी असम में है।

देश में 168 सीएफएस थे जिनमें से तमिलनाडु में सबसे अधिक संख्या (50) है उसके बाद महाराष्ट्र में (48) और राजस्थान में (24) है।

2016-17 में देश में कुल 80 सक्रिय आईसीडी के माध्यम से कुल ₹ 4.27 लाख करोड़ के आयात और निर्यात का प्रबंधन किया गया था, जिसमें से देश की शीर्ष पांच आईसीडी नामत:,आईसीडी तुगलकाबाद (दिल्ली),आईसीडी वाइटफिल्ड बैंगलुरू,आईसीडी साबरमती गुजरात,आईसीडी तुतीकोरिन तमिलनाडू और आईसीडी गढ़ी हरसरू हरियाणा में कुल ₹ 1.94 लाख करोड़ मूल्य के कारोबार (कुल कारोबार का लगभग 46प्रतिशत) का प्रबंधन किया गया था।

वि.व 13 और वि.व 15 के बीच आईसीडी के माध्यम से आयात की वार्षिक वृद्धि 16-17 प्रतिशत के बीच थी, परन्तु वि.व 16 में 0.6 प्रतिशत की गिरावट हुई और वि.व 17 के दौरान केवल 1.5 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई थी। आईसीडी से निर्यात में वि.व 13 और वि.व 14 के बीच 27.5 प्रतिशत की प्रभावशाली वृद्धि हुई परन्तु वि.व 15 में 8.2 प्रतिशत, वि.व 16 में 3 प्रतिशत और वि.व 17 में 4.3 प्रतिशत तक कम हो गई।

2016-17 के दौरान, आईसीडी के माध्यम से आयात की शीर्ष मदें मशीनरी और इलैक्ट्रिकल उपकरण, बेस मेटल प्लास्टिक और रबड़, कैमिकल, टेक्सटाईल और लकड़ी लुगदी और रेशेदार सेल्यूलोसिस सामग्री थी। आईसीडी के माध्यम से निर्यात की शीर्ष मदों में टेक्सटाईल, कैमिकल उत्पाद, मशीनरी और इलैक्ट्रिकल उपकरण बेस मेटल वाहन और संबद्ध यातायात उपकरण और कृषि उत्पाद शामिल थे। आईसीडी के माध्यम से भारतीय आयात का चीन सबसे बड़ा स्रोत था, उसके बाद जापान और दक्षिण कोरिया, जबकि आईसीडी के माध्यम से भारतीय निर्यात के लिए मुख्य गन्तव्य देश यूएसए, यूएई और यूके थे।

आईसीडी और सीएफएस की कार्यप्रणाली की निष्पादन लेखापरीक्षा यह आकलन करने के उद्देश्य‍य से की गई थी कि आईसीडी एवं सीएफएस कार्गों के कंटेनरीकृत आवागमन के माध्‍यम से भारत के विदेशी व्‍यापार को किस सीमा तक सरल करने मे सक्षम हैं।

आईसीडी और सीएफएस की स्थापना के लिए रूपरेखा का अभाव

लेखापरीक्षा उद्देश्य निम्नलिखित थे :

  • आईसीडी और सीएफएस की स्थापना तथा समापन की प्रक्रियाओं की जांच करना।
  • व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए कंटेनरीकृत कार्गों प्रबंधन तथा सीमाशुल्क निकासी सुविधाएं उपलब्‍ध कराने में आईसीडी और सीएफएस के निष्पादन का निर्धारण करना, और
  • आईसीडी और सीएफएस के परिचालन के लिए विनियामक तंत्र की जांच करना।

नमूना जांच के लिए चयनित नमूनों में 35 सीमाशुल्क कमिश्नरियों के तहत कुल 85 आईसीडी/सीएफएस शामिल थे,जिनमें 44 आईसीडी (38 कार्यशील तथा 6 बंद/अकार्यशील) तथा 41 सीएफएस थे। निष्पादन लेखापरीक्षा में 2012-13 से 2016-17 तक की पांच वर्षीय समयावधि के संव्यवहारों को कवर किया गया था।

रिपोर्ट को पांच अध्यायों में बांटा गया है। अध्याय I आईसीडी/सीएफएस सेक्टर का एक विहंगावलोकन प्रस्तुत करता है। अध्याय II निष्पादन लेखापरीक्षा करने के लिए प्रयुक्त लेखापरीक्षा उद्देश्यों,कार्यक्षेत्र,नमूना चयन पद्धति और मापदंड का वर्णन करता है। अध्याय III,IV और V में निष्पादन प्रतिवेदन के तीनों उद्देश्य में से प्रत्येक का पालन करते हुए लेखापरीक्षा निष्कर्ष, परिणाम और सिफारिशें शामिल है।

इस रिपोर्ट में उप-पैराग्राफ सहित अठाईस लेखापरीक्षा पैराग्राफ और 8 सिफारिशें शामिल है। निष्पादन लेखापरीक्षा में ₹ 573.21 करोड़ का राजस्व निहितार्थ है।

वाणिज्य विभाग (डीओसी) से (जनवरी 2018) और राजस्व विभाग (डीओआर) से (फरवरी 2018) में प्राप्‍त प्रतिक्रियाओं को उपयुक्त स्थान पर शामिल किया गया है।

लेखापरीक्षा निष्कर्ष

महत्वपूर्ण लेखापरीक्षा निष्कर्ष नीचे दिये गए है।

अध्याय 3- अंतर्देशीय कंटेनर डिपो (आईसीडी) और कंटेनर फ्रेट स्टेशनों (सीएफएस) की स्थापना की प्रक्रियाएं
आईसीडी और सीएफएस की स्थापना के लिए रूपरेखा का अभाव

अंतर्देशीय कंटेनर डिपो (आईसीडी), कंटेनर फ्रेट स्टेशनों (सीएफएस) और एयर फ्रेट स्टेशनों (एएफएस) की स्थापना करने के लिए एक ही स्थान पर प्रस्तावों को मंजूरी देने के लिए 1992 में एक अन्तर-मंत्रालय समिति (आईएमसी) गठित की गई थी। वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय दिशानिर्देश, 1992 आईसीडी और सीएफएस की स्थापना के लिए आवश्यकताओं को निर्धारित करते है। लेखापरीक्षा ने देखा कि वाणिज्‍य विभाग (डीओसी) की वेबसाइट पर दिशानिर्देशों के दो सेट उपलब्ध हैं और उनमें से किसी में भी अधिसूचना या ज्ञापन उल्लिखित नहीं है जिसके माध्यम से उनको औपचारिक रूप प्रदान किया गया था। वाणिज्‍य विभाग ने बताया कि दिशानिर्देश सितम्बर 2017 में संशोधित किये गये थे लेकिन भूलवश उनकी वेबसाइट से पूर्व दिशानिर्देश नहीं हटाये गये थे। इसके अतिरिक्त वाणिज्‍य विभाग ने कहा कि अलग से अधिसूचना की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ये आईएमसी की शर्तों के संदर्भ के अंतर्गत बनाये गये हैं। तथापि, दिशानिर्देशों की किसी भी औपचारिक अधिसूचना के संदर्भ के बिना, लेखापरीक्षा पता नहीं लगा सकी कि दोनों में से कौन सा दिशानिर्देश औपचारिक था और संशोधित दिशानिर्देश किस दिन से लागू हुये।

लेखापरीक्षा ने निष्कर्ष निकाला कि मौजूदा दिशानिर्देश, अनुमोदन देते समय अनुपालन किये जाने वाले विभिन्न चरणों की चेकलिस्ट निर्धारित करते हैं जो अधिक प्रक्रियात्मक प्रवृति के हैं, और सिद्धांतों एवं उद्देश्यों को निर्धारित करने के लिएे कोई भी नीति दस्तावेज या रूपरेखा नहीं है जो प्रस्तावों के मूल्यांकन के लिएे आईएमसी सदस्यों की सहायता करे।

इसके अतिरिक्त अनुमोदन प्रक्रिया के बाद आईएमसी या उसके मूल मंत्रालय के लिए कोई भी भूमिका और उत्तरदायित्व परिभाषित न करते हुए इस क्षेत्र को अविनियमित छोड़ दिया गया है।

(पैरा 3.1)

मूल डाटा उपलब्ध न होना और आईसीडी तथा सीएफएस की संख्या और स्थिति पर विश्‍वसनीय डाटा का अभाव

आईसीडी और सीएफएस की स्थापना और संचालन से संबंधित मूल डाटा, जैसे उनकी संख्या, स्थान,संचालनात्‍मक स्थिति (अर्थात क्रियाशील या बंद), संस्थापित क्षमता, संचालन क्षमता के संदर्भ में निष्पादन आदि डीओसी के पास उपलबध नहीं था, जो नोडल मंत्रालय था जिसके अंतर्गत आईएमसी कार्यशील था।

आईएमसी की स्थापना से पूर्व और बाद में स्थापित आईसीडी की संख्या के व्यापक डाटा के लिएे लेखापरीक्षा के अनुरोध पर, डीओसी ने आईसीडी और सीएफएस की सूची उपलब्ध कराई जो 1992 में आईएमसी की स्थापना के बाद क्रियाशील हुये थे और कहा कि उनके पास उस वर्ष से पूर्व का डाटा उपलब्ध नहीं है। केन्द्रीय उत्पाद शुल्क और सीमाशुल्क बोर्ड (सीबीईसी) वर्तमान में सीबीआईसी# ने लेखापरीक्षा को कोई डाटा उपलब्ध नहीं कराया। इसलिएे लेखापरीक्षा ने स्थानीय सीमाशुल्क कार्यालयों से उनके क्षेत्राधिकार के अंतर्गत क्रियाशील आईसीडी और सीएफएस के विवरण हेतु संपर्क किया और क्रियाशील आईसीडी/सीएफएस के डीओसी द्वारा अनुरक्षित डाटा और स्थानीय कमिश्नरियों के माध्यम से एकत्र डाटा के बीच काफी विसंगतियां देखीं। लेखापरीक्षा ने अभिलेखों की नमूना जांच के दौरान स्थिति की गलत रिपोर्टिंग और अद्यतित न किये जाने के कम से कम 27 मामले देखे।

लेखापरीक्षा ने निष्कर्ष निकाला कि कार्यरत क्रियाशील/बंद आईसीडी/सीएफएस की संख्या पर डाटा के एकल विश्‍वसनीय स्रोत का अभाव है।

(पैरा 3.2)

सृजित एवं प्रयुक्‍त क्षमता का आकलन किये बिना नये आईसीडी और सीएफएस का अनुमोदन

सृजित एवं प्रयुक्‍त क्षमता का आकलन किये बिना आईएमसी द्वारा नये आईसीडी और सीएफएस अनुमोदित किये गये थे। लेखापरीक्षा ने देखा कि नमूना जांच किये गये लगभग 40 प्रतिशत आईसीडी और सीएफएस अपनी संस्थापित क्षमता के आधे से भी कम का कार्य कर रहे थे और अन्य एक तिहाई अपनी क्षमता से 50-70 प्रतिशत के बीच कार्य कर रहे थे। कोलकाता पोर्ट से जुडे पांच सीएफएस में, यद्यपि, उनकी संयुक्त कार्गो संचालन क्षमता का केवल 74 प्रतिशत क्षमता का उपयोग किया गया था, एक नये सीएफएस को कार्य शुरू करने की अनुमति दी गई थी। लेखापरीक्षा ने देखा कि जैसे ही नया सीएफएस क्रियाशील हुआ, मौजूदा सीएफएस में से एक की संचालन मात्रा लगभग उसी अनुपात से काफी कम हुई जितनी नये सीएसएफ की संचालन मात्रा में वृद्धि हुई। जेएनपीटी मुंबई में, 2012 में, पोर्ट से जुडे 27 सीएफएस में से 13 में उपयोगिता क्षमता 60-65 के बीच बताई गई थी, जबकि चेन्नै पोर्ट में 29 सीएफएस में से 16 में लगभग 56 प्रतिशत थी। आईएमसी ने 2012-17 के दौरान महाराष्ट्र में दस नये सीएफएस और चेन्नै में छह सहित तमिलनाडु में बारह नये आईसीडी अनुमोदित किये।

डीओसी ने कहा कि आईएमसी द्वारा प्राप्त प्रस्ताव निजी डेवलपर्स से प्राप्त करोबार प्रस्ताव हैं जिनकी व्यवहार्यता अनुमानित यातायात मात्रा पर निर्भर करती है।

लेखापरीक्षा ने निष्कर्ष निकाला कि कुछ क्षेत्रों और देश के मुख्य पोर्ट क्षेत्रों में और उसके आस-पास आईसीडी और सीएफएस की तीव्र वृद्धि हुई है और निर्माण क्षमता के कम उपयोग का एक मुख्य कारण आस-पास के इलाके मे कई आईसीडी/सीएफएस की स्थापना है। इसके कारण सीमाशुल्क विभाग के संसाधनों का भी जरूरत से ज्यादा उपयोग हुआ।

(पैरा 3.3)

लेखापरीक्षा ने आईसीडी और सीएफएस परियोजनाओं के अनुमोदन और संचालन में विलंब के अन्य मामलों, न्यूनतम भूमि क्षेत्र आवश्यकता पूर्ण किये बिना क्रियाशील आईसीडी और आईएमसी से अनुमोदन प्राप्त करने से पूर्व डिवेलपर द्वारा किये गये भारी निवेश के मामलों को इंगित किया।

(पैरा 3.4, 3.5, 3.6)

अध्याय 4 – कंटेनरीकृत कार्गो में व्यापर को सुविधाजनक करने में आईसीडी तथा सीएफएस की प्रभावकारिता
पर्याप्त बुनियादी ढांचे के बिना क्रियाशील आईसीडी

आईसीडी और सीएफएस का संचालन करने वाले अभिरक्षक सीमाशुल्क क्षेत्र में कार्गों का प्रबंधन विनियम (एचसीसीएआर) 2009 के विभिन्न प्रावधानों के अंतर्गत अपने संबंधित परिसर पर संचालित आयात/निर्यात माल के लिए अपेक्षित बुनियादी ढांचा और सुरक्षा प्रदान करने हेतु जिम्मेदार हैं। नमूना जांच किये गये आईसीडी में, लेखापरीक्षा ने देखा कि आईसीडी कोट्टायम में कंटेनरों की लोडिंग और अनलोडिंग के लिएे क्रेन और उठान कार्य के लिए रीचस्टेकर जैसे मूल संचालन उपकरण उपलब्ध नहीं थे।यद्यपि आईसीडी प्रतिवर्ष 9000 टीईयूज1 का प्रबंधन करने के लिए प्रस्‍तावित थी तथापि 2012-17 की पांच वर्ष की अवधि के दौरान केवल 9159 टीईयू को प्रबंधित किया गया था। केवल 25 निर्यातको ने लेखापरीक्षा के समय तक आईसीडी सुविधाओं का लाभ उठाया था।

आईसीडी वरना गोवा में, लेखापरीक्षा ने देखा कि एचसीसीएआर 2009 के तहत न्यूनतम अवसरंचना आवश्यकताओं को न्यूनतम क्षेत्र आवश्यकता के उल्लंघन सहित पूरा नहीं किया गया था। आईसीडी के तहत अधिसूचित क्षेत्र 1.2 हेक्टेयर था जो आईसीडी के लिए 4 हेक्‍टेयर की न्यूनतम क्षेत्र आवश्यकता से बहुत कम था।

(पैरा 4.1)

खतरनाक वस्तुओं के संग्रहण के लिए निर्दिष्ट सीमांकित क्षेत्र तथा स्थान की अनुपलब्धता

एचसीसीएआर 2009 यह अनुबंधित करता है कि आयातित तथा निर्यातित माल की उत्तराई तथा संग्रहण के लिए अलग क्षेत्र का सीमांकन करना तथा माल के धूम्रीकरण के लिए पृथक स्थान उपलब्ध कराना अभिरक्षक की जिम्मेदारी है। खतरनाक माल के प्रहस्तन तथा संग्रहण के संदर्भ में सरंक्षक द्वारा खतरनाक मलबा (प्रबंधन, प्रहस्तन, ट्रांस बाउंड्री) नियमावली 2008 तथा अन्य संबंधित सरकारी प्रावधानों का अनुपालन किया जाना चाहिए। लेखापरीक्षा ने इन प्रावधानों के उल्लंघन के कई मामले देखे जहां आईसीडी/सीएफएस ने न तो एचसीसीएआर 2009 के अनुसार सीमांकित क्षेत्र प्रदान किए थे न ही खतरनाक माल के प्रबंधन के लिए पृथक क्षेत्र उपलब्ध कराया था।

(पैरा 4.2, 4.3)

ईडीआई कनेक्टिविटी में व्यवधान

भारतीय सीमाशुल्क ईडीआई प्रणाली (आईसीईएस) 1.5 विभाग के साथ-साथ आयातको/निर्यातकों दोनों द्वारा प्रयुक्त सीमाशुल्क कार्य प्रवाह के स्वचलीकरण के लिए सीमाशुल्क का एकीकृत सॉफ्टवेयर है। ईडीआई कनेक्टिविटी आयात तथा निर्यात की शीघ्र निकासी की सुविधा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

लेखापरीक्षा ने पाया कि स्थानीय कनेक्टिविटी अवरोध के लिए कोई लॉग बुक अनुरक्षित नहीं की गई थी तथा कई आईसीडी में बार-बार नेटवर्क की खराबी थी। महानिदेशक (प्रणाली) ने ईडीआई डाउनटाइम के विस्तार पर सूचना साझा नहीं की।

(पैरा 4.4)

अध्याय 5 – आईसीडी तथा सीएफएस के प्रचालन के लिए नियामक संरचना
निर्यात तथा आयात कार्गो के आवागमन की उचित मॉनीटरिंग का अभाव

सीमाशुल्क ईडीआई प्रणाली (आईसीईएस) में निर्यात ट्रांसशिपमेंट मॉड्यूल (ईटीएम) सीमाशुल्क तथा पोर्ट प्राधिकरणों, आईसीडी तथा शिपमेंट लाइनों के बीच इलेक्ट्रॉनिक मैसेज के विनिमय के माध्यम से कंटेनर आवागमन की इलेक्ट्रॉनिक मॉनीटरिंग की अनुमति देता है। कंटेनर की ट्रांसशिपमेंट में लगे सभी कैरियर (शिपिंग लाइन/आईसीडी/अन्य कैरियर) को आईसीईएस में निर्यात ट्रांसशिपमेंट परमिट के लिए आवेदन के साथ एक बांड/बैंक गारंटी पंजीकृत करना अनिवार्य है जो निर्यात कार्गो के साथ कंटेनर को आईसीडी से गेटवे पोर्ट तक ट्रांसशिप होने की अनुमति देता है। जैसे ही एक्सपोर्ट जनरल मैनिफैस्ट दर्ज किया जाता है अर्थात कार्गो जाने के लिए तैयार होता है तो बांड जिसे प्रारम्भ में डेबिट किया गया था, स्वत: ही क्रेडिट हो जाता है। मैन्यूअल प्रणाली में, आयातित कार्गो के लिए लैंडिग प्रमाणपत्रों तथा निर्यातित कार्गो के लिए हस्तातंरण प्रतियों के मिलान के माध्यम से मॉनीटरिंग की जाती है। कार्गो की मॉनीटरिंग माल तथा कंटेनरों की चोरी, हेराफेरी से बचने में सहायता करती है। लेखापरीक्षा ने पाया कि नोएडा, कानपुर, बोलपुर, चैन्नै पोर्ट एवं कोलकाता पोर्ट कमिश्नरियों के तहत नमूना जांच किए गए आईसीडी में ईटीएम का संचालन नहीं था। नौ कमिश्नरी जहां मॉनीटरिंग की मैन्यूअल प्रणाली का अनुसरण किया जा रहा था, में निर्यात के लिए शिपिंग बिलों की हस्तांतरण प्रतियां निर्यात के 90 दिनों के पश्चात भी प्राप्त नहीं हुई थी।

आयात साइड पर, लेखापरीक्षा ने देखा कि नमूना जांच किए गए आईसीडी तथा सीएफएस में आयात ट्रांसशिपमेंट मॉडयूल (आईटीएम) तकनीकी गड़बड़ के कारण कार्यशील नहीं थे। आईसीईएस के माध्यम से कंटेनरो का उनके वास्तविक गन्तव्य स्थल तक पता लगाना संभव नहीं था।

(पैरा 5.1.1)

अनिकासित कार्गो का लंबन

लेखापरीक्षा द्वारा नमूना जांच किए गए 85 आईसीडी/सीएफएस से संग्रहित किए गए अनिकासित कंटेनरों पर डाटा में यह देखा गया कि 31 मार्च 2017 तक 1.17 लाख वर्ग मीटर के कुल संग्रहण क्षेत्र पर कंटेनर निपटान हेतु लंबित थे। इनमें से 3397 कंटेनर (57 प्रतिशत) 3 वर्षो से अधिक समय से निपटान हेतु लंबित थे। अनिकासित कार्गो के विश्लेषण से पता चला कि लम्बन प्रमुख रूप से सीमाशुल्क द्वारा अनापत्ति प्रमाणपत्रों को जारी करने में विलम्ब, संयंत्र कोरांटीन तथा प्रदूषण नियंत्रण एजेंसियों जैसी भागीदार एजेंसियों से मंजूरी प्रमाणपत्रों में विलम्ब, कार्गो के निपटान के लिए क्रियान्वयन आदेशों में विलम्ब तथा कंटेनरों के पुन: निर्यात में विलम्ब की वजह से था।

अनिकासित कंटेनरों के बीच लेखापरीक्षा ने खतरनाक अपशिष्ट जैसे मेटल स्‍क्रैप, नगरपालिका अपशिष्ट,पुराने टायर तथा पुरानी युद्ध सामग्री के 469 कंटेनर, खाद्य मद जैसे खराब होने वाले माल के 262 कंटेनर तथा टीक/टीम्बर लॉग के 86 कंटेनर पाए।

(पैरा 5.2)

खतरनाक अपशिष्ट की डम्पिंग

विदेश व्यापार नीति की प्रक्रियाओं की हस्‍तपुस्तिका 2009-14 मेटल स्‍क्रैप तथा अपशिष्ट के आयात को विनियमित करती है। पुराने तथा खराब रैग, पीईटी बॉटल तथा अपशिष्ट के आयात को आईटीसी के शेड्यूल Iके तहत आयात नीति के अनुसार विनियमित किया जाता है। हानिकारक अपशिष्‍ट (प्रबंधन, हैंडलिंग और ट्रांस बाउंड्री आवागमन) नियमावली 2008 मेटल स्‍क्रैप और पुराने रबर टायरों के आयात को पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा दी गई विशेष अनुमति के और राज्‍य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुमति प्रमाणपत्र के अंतर्गत विनियमित करता है।

नमूना जांच किऐ गए 85 आईसीडी में लेखापरीक्षा ने पाया कि 31 मार्च 2017 तक हानिकारक अपशिष्‍ट के 469 कंटेनर एक से सत्रह वर्ष की अवधि तक बिना निपटान के पड़े थे। इनमें राजस्‍थान में तीन आईसीडी में जीवित बम,युद्ध सामग्री स्‍क्रैप, मुंबई सीमाशुल्‍क ज़ोन II के अंतर्गत एक सीएफएस में पुराने टायर,धातु स्‍क्रैप और हानिकारक रसायन के 92 कंटेनर,आईसीडी तुगलकाबाद में हानिकारक कार्गो के 15 कंटेनर और आईसीडी मुरादाबाद में मिश्रित अपशिष्‍ट के 50 कंटेनर शामिल थे।

कुछ नमूना मामलों के विस्‍तृत विश्‍लेषण से लेखापरीक्षा को पता चला कि हानिकारक अपशिष्‍ट के आयात के लिए कार्य प्रणाली में बिना आवश्‍यक दस्‍तावेजों के कार्गों का आयात, हाई सी सेल्‍स के माध्‍यम से म्‍यूनि‍सिपल अपशिष्‍ट का आयात और कार्गो की गलत उद्धघोषणा के द्वारा म्‍यूनिसिपल अपशिष्‍ट का आयात शामिल है।

इस तथ्‍य के अतिरिक्‍त कि ये आयात निर्धारित प्रक्रियाओं के कार्यान्‍वयन में शिथिलता के कारण संभव हो पाऐ थे, लेखापरीक्षा ने देखा कि हानिकारक अपशिष्‍ट के साथ कंटेनरों के पुन: आयात के लिए स्‍पष्‍ट प्रक्रिया के अभाव के कारण ऐसे कंटेनर बिना निपटान ही पड़े रहे।

(पैरा 5.3)

सीमाशुल्‍क अधिनियम की धारा 23 के अंतर्गत आयातकों को अनुचित लाभ

सीमाशुल्‍क अधिनियम की धारा 23 के अंतर्गत एक आयातक घरेलू निकासी के लिए माल का निर्धारण होने अथवा गोदाम में माल के जमा होने से पहले कुछ परिस्थितियों में आयातित माल का स्‍वामित्त्‍व त्‍याग सकता है। नमूना जांच किये गए आईसीडी और सीएफएस के मामलों में लेखापरीक्षा ने पाया कि 31 मार्च, 2017 तक आगम पत्र दर्ज करने के बाद आयातकों द्वारा 838 कंटेनर अपसर्जित कर दिऐ गये। अपसर्जित कार्गों के ऐसे मामलों की संवीक्षा से पता चला कि कुछ आयातक नियमित रूप से कार्गों अपसर्जित कर रहे थे जबकि वे उसी प्रकार की वस्‍तुओं का आयात कर रहे थे। लेखापरीक्षा को ऐसे कोई रिकॉर्डड कारण नहीं मिले जिसके कारण आयातक उच्‍च मूल्य‍ की वस्‍तुओं का ऐच्छिक अपसर्जन करे। आयातित वस्‍तुओं में पवनचक्की के पुर्जे,स्‍टील कॉइल, रबर टायर आदि थे।

(पैरा 5.4)

आंतरिक नियंत्रण तथा आंतरिक लेखापरीक्षा

इस विषय के अतंर्गत दस उप-पैराग्राफों में लेखापरीक्षा ने आईसीडी और सीएफएस के नियामक तंत्र में कमजोर आतंरिक नियंत्रण दर्शाने वाले मुद्दों की रिपोर्ट की है। इन मुद्दों में अभिरक्षकों द्वारा बॉन्‍ड/बैंक गारंटी तथा बीमा कार्यान्‍वयन में कमी, लागत वसूली प्रभार की कमी, कार्गों की चोरी और उठाईगीरी,आगम पत्र और शिपिंग बिलों की मैनुअल फाईलिंग शामिल है। इसके अतिरिक्‍त,लेखापरीक्षा ने पाया कि स्‍थानीय जोखिम प्रबंधन समितियां (एलआरएम), जैसाकि सीबीएसई के 2007 के परिपत्र के अंतर्गत अपेक्षित है, न्‍यूनतम 12 आईसीडी में जहां से डाटा प्राप्‍त हुआ था,स्‍थानीय जोखिम प्रबंधन समितियां स्‍थापित नहीं की थी। लेखापरीक्षा ने पश्‍च अनुपालना लेखापरीक्षा (पीसीए) विंग स्‍थापित न कि‍या जाना, पीसीए लेखापरीक्षा के लिए चयनित दस्‍तावेजों की लंबित संवीक्षा और आंतरिक लेखापरीक्षा के अभाव जैसी कमियां देखी।

(पैरा 5.8.1 से 5.8.10)

निष्‍कर्ष

आईसीडी और सीएफएस स्‍थापित करने के लिए डीओसी के वर्तमान दिशानिर्देश मंजूरी प्रदान करते समय अनुपालन करने हेतु चरणों की जांच सूची निर्धारित करते है, जो कि प्रक्रियात्‍मक प्रकृति के है, और कोई नीति दस्‍तावेज या तंत्र नहीं है जो सिद्धान्‍त एवं उद्देश्य‍य निर्धारित करें जो प्रस्‍तावों का मूल्‍यांकन करने में आईएमसी सदस्‍यों की सहायता कर सकता है। आईसीडी/सीएफएस सेक्‍टर के लिए सर्वोच्‍च नियामक और मॉनीटरिंग निकाय होने के बजाए, आईएमसी की भूमिका एक बार स्‍थापित होने के पश्‍चात आईसीडी और सीएफएस के निष्‍पादन को मॉनीटर करने के उत्तरदायित्‍व के बिना ही केवल स्‍वीकृति प्रदान करने वाले विनियामक तक सीमित है। डीओसी, जो कि एक नोडल मंत्रालय है, में आईसीडी और सीएफएस पर जानकारी और डाटा की कमी होने के कारण संस्‍वीकरण प्रदान करने से पूर्व आईएमसी द्वारा देश में कंटेनर ट्रैफिक प्रबंधन के लिए उपलब्‍ध अवसंरचना सुविधाओं पर समग्र दृष्टि रखने में बाधा उत्‍पन्‍न होती है। क्षमता आवश्‍यकता के वृहत परिप्रेक्ष्‍य को ध्‍यान में रखने के बजाए मामले से मामले के आधार पर स्‍वीकृति दी जाती है।

आईसीडी के ऐसे मामले जो स्‍थापित किये जा चुके है लेकिन आवश्‍यक अवसंरचना की कमी के कारण क्रियात्‍मक नहीं है सृजित क्षमता के अपव्‍यय को दर्शाता है। ईडीआई कनेक्टिविटी, जो कि निर्यात/आयात कार्गो के शीघ्र निपटान में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाती है, की अनवरत मॉनीटर करने की आवश्‍यकता है।यद्यपि, लेखापरीक्षा को नमूना जांच की गई किसी आईसीडी और सीएफएस में ईडीआई डाउनटाईम पर अनुरक्षित डाटा देखने को नहीं मिला जो कि ईडीआई के कार्यचालन की मॉनीटरिंग की प्रभावकारिता पर प्रश्‍नचिन्‍ह लगाता है।

अनिकासित कार्गो कंटेनरों के विश्‍लेषण से ऐसे अनेक मुद्दों का पता चला जो कंटेनरीकृत कार्गों के प्रबंधन को रूग्‍ण कर रहे थे। कंटेनरों के निपटान में आवश्‍यक अनुमति प्राप्‍त करने में विलंब समस्‍या का एक छोर है जबकि, हानिकारक अपशिष्‍ट सामग्री के साथ डंप किए जा रहे कंटेनरों के अनेक उदाहरणों के कारण समस्‍या कई गुणा बढ़ गई है। विनियमों में कमी के कारण डंप किए गए अपशिष्‍ट से निपटने में सरकार की प्रतिक्रिया बहुत अवरोध उत्‍पन्‍न कर रही है जैसे सीमाशुल्‍क अधिनियम की धारा 23(2) के अंतर्गत कंटेनरों के अपसर्जन का प्रावधान जो कि कुछ आयातकों द्वारा नियमित रूप से प्रयोग किया जाता रहा है और डंप किऐ जा चुके निगम अपशिष्‍ट के निपटान हेतु वर्तमान विनियमों में स्‍पष्‍टता की कमी। नियामक तंत्र के उल्‍लंघन के अन्‍य मामलों के बीच कई आईसीडी और सीएफएस केंद्र और राज्‍य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डो से आवश्‍यक अनुमति प्राप्‍त किए बिना हानिकारक कार्गों का प्रबंधन करते पाये गये थे।

आंतरिक नियंत्रण तंत्र अनुपस्थित था क्योंकि बांड्स, बैंक गारंटियों और बीमा में गिरावट की घटनायें देखी गई। ईडीआई प्रणाली के बावजूद,आगम बिलों और शिपिंग बिलों की दस्‍ती फाइलिंग प्रचलित थी। पश्‍च अनुपालन लेखापरीक्षा कार्यों और आंतरिक लेखापरीक्षा में कमी से लेखापरीक्षा इस निष्कर्ष पर पहुंची कि आईसीडी और सीएफएस की सम्पूर्ण अनुपालन व्यवस्‍था कमजोर थी।

सिफारिशों का सार

लेखापरीक्षा निष्कर्षों और परिणामों को देखते हुए लेखापरीक्षा सिफारिश करती है:

  • यह सिफारिश की जाती है कि सरकार एक मजबूत ढॉंचा प्रदान करने के लिए एक नीति स्तरीय दस्तावेज बनाए जो अनुमोदन प्रक्रिया के साथ-साथ निगरानी एवं विनियामक तंत्र को भी व्यापक तरीके से परिभाषित करे। ऐसा तंत्र केवल सीमाशुल्क नियमों पर आधारित नहीं हो सकता क्योंकि यह मूल रूप से सरकारी राजस्व की सुरक्षा के लिए तथा वस्तुओं के सीमापार आवागमन से संबंधित विधि है और जो सूखे पत्तन क्षेत्र की निगरानी और विनियमन की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता।
  • डीओसी द्वारा आईसीडी और सीएफएस पर एक वेबसाइट बनाई जाए जहां सभी हितधारकों द्वारा आईसीडी और सीएफएस के प्रचालनों पर तात्कालिक सूचना और अद्यतित डाटाबेस तक अभिगम संभव हो।
  • सीबीईसी सीसीएसपी द्वारा एचसीसीएआर की शर्तों के उल्‍लंघन के लिए इसके अन्तर्गत दंड संबंधी खण्ड लाने पर विचार करे।
  • सीबीईसी सभी ईडीआई स्थलों पर एक डाउनटाइम डाटाबेस प्रणाली बनाने और सीसीएसपीज के निष्पादन मापक के रूप में इस सूचना को सार्वजनिक रूप से साझा करने के लिए इसे अनिवार्य बनाने पर विचार करे।
  • सीबीईसी, आईसीईएस में उतराई प्रमाण पत्र सूचना डालकर बांड को स्वचालित रूप से पुन: क्रेडिट करने के लिए आईसीईएस में उपयुक्त संशोधन करने पर विचार कर सकती है। बोर्ड अभिरक्षक रिपोर्टों पर निर्भर रहने की बजाए गैर निकासी वाले कार्गो/ कंटेनर्स की स्वतंत्र रूप से निगरानी करने के लिए एक रिपोर्टिंग तंत्र बनाने पर भी विचार कर सकता है।
  • सीमापार व्यापार के माध्यम से भारत में खतरनाक अपशिष्ट की बडे़ पैमाने पर डंपिंग को रोकने के लिए सीमाशुल्क प्राधिकरण चूककर्ता आयातकों और शिपिंग लाइनों के विरूद्ध उपयुक्‍त विधिक कार्रवाई के लिए सीमाशुल्‍क अधिनियम के अन्‍तर्गत शास्तियां लगाने के अलावा खतरनाक सामग्री (प्रबंधन, हैंडलिंग और सीमापार आवागमन) नियमावली 2008 अथवा किसी अन्य भारतीय कानून का सहारा ले सकते है। सीबीईसी इस संबंध में अपने क्षेत्रीय कार्यालयों को तत्संबंधी दिशा-निर्देश जारी कर सकता है।
  • सीबीईसी प्रक्रियाओं में किसी भी अस्‍पष्‍टता से बचने के लिए पर्यावरण एवं जहाजरानी जैसे अन्य तत्संबंधी मंत्रालयों के साथ सलाह करके खतरनाक अपशिष्ट के पुनर्निर्यात के लिए प्रक्रियायें बनाये।
  • नियमित रूप से जानबूझ कर कार्गो छोड़ने के लिए धारा 23 के प्रावधानों का अनुचित लाभ लेने वाले आयातकों के जोखिम से निपटने के लिए बोर्ड प्रावधान की समीक्षा करे, ताकि कार्गो छोड़ना केवल दुर्लभतम मामले मे ही अनुमत किया जाए।